समीर वानखेड़े चंद्रपुर महाराष्ट्र:
मैं 2019 के बैच का 6 वे क्रमांक का आईएएस ऑफिसर हु ये बोलकर शुभम गुप्ता ने गड़चोरोली में बवाल मचा रखा था ।पिछले कई दशकों से नक्सलवाद से जूझ रहे गढ़चिरौली में इस समय रोजाना प्रेस कॉन्फ्रेंस चल रही है. एटापल्ली और भामरागढ़ के सुदूर तालुकाओं के आदिवासी समूहों में आ रहे हैं और डेढ़ साल पहले हुए उत्पीड़न और धोखाधड़ी की शिकायतें उठा रहे हैं। इन लोगों के साथ लगातार हो रहे अन्याय के कारण ही जिले में नक्सलवाद पनपा है। इसे खत्म करने के लिए प्रशासनिक तंत्र तत्पर रहे, इसके लिए सरकार ने कई फैसले लिये। विशेष रूप से आदिवासी विकास विभाग के परियोजना विभाग भामरागढ़ के लिए एटापल्ली में उपविभागीय अधिकारी की नियुक्ति की बात सामने आई है।
मकसद यह है कि आदिवासी अपनी समस्याओं के समाधान के लिए प्रशासन के पास आएं, न कि नक्सलियों के पास। ये प्रेस कॉन्फ्रेंस इस वक्त गवाही दे रही हैं कि वो कितने फेल हुए। इसकी वजह भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी शुभम गुप्ता को बताया गया है। वहां काम करने के दौरान आम लोगों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार और परेशानी के हर दिन नए मामले सामने आ रहे हैं। ये सभी घटनाएं डेढ़ साल पहले की हैं।इनकी शिकायत करने वाले आदिवासी अब तक चुप थे। ये सभी घटनाएं अभी बाहर आ रही है क्योंकि एक मामले में शुभम गुप्ता दोषी पाए गए है।
इस दृढ़ विश्वास से उन्हें साहस मिला। कोई और अधिकारी होता तो इलाके के आदिवासी और संगठन चिल्ला उठते, लेकिन गुप्ता यह गैजेटेड अधिकारी था । समाज में इस सेवा का मान-सम्मान और दायरा भी बड़ा है। इसलिए आदिवासी सबकुछ सहते हुए शांत रहे. यह ऐसी बात है जिस पर उन अधिकारियों को ध्यान देना चाहिए जो इस सेवा में आते हैं और दबंगों की तरह व्यवहार करते हैं, ऐसे व्यवहार करते हैं जैसे हम राजा हों।
आज भी इन अधिकारियों की समाज में प्रतिष्ठा है। इस बात की गारंटी है कि एक बार कोई इस नौकरी में लग जाए तो आसानी से इससे बाहर नहीं निकल सकता। यह सुरक्षा इसलिए है ताकि सेवा में आने वाला हर व्यक्ति हमेशा न्याय का रुख अपनाए। इसके लिए समय-समय पर शासकों से झगड़ा संभव है। इसलिए चार्टर्ड ऑफिसर की जिम्मेदारी बहुत बड़ी होती है. जब वह होश खो बैठता है और मनमानी पर उतर आता है तो क्या होता है, यह शुभम गुप्ता मामले में साफ नजर आ रहा है।
गढ़चिरौली में सचमुच इस अधिकारी ने बवाल कर दिया गया था। जो लोगों को बताता रहा कि मैं 2019 बैच का था और मैं देश में छठे स्थान पर था। वे परियोजना अधिकारी एवं उपखण्ड अधिकारी के दो पदों पर रहे। यह नियुक्ति उनकी परिवीक्षा अवधि है। इस दौरान बिना किसी विवाद में पड़े प्रशासन को समझना, लोगों की समस्याओं का समाधान करना और अच्छी छवि बनाना हर अधिकारी का कर्तव्य है।
इस ताकत से उसकी भविष्य की प्रगति आसान हो जाती है। इसलिए इस सेवा के अधिकांश अधिकारी कम से कम इस अवधि के दौरान विनम्र रहते हैं। गुप्ता इसके पूर्ण अपवाद थे। आम लोगों के साथ उनका व्यवहार भयानक था। अक्सर इस तरह के व्यवहार को समाज सहन कर लेता है लेकिन गुप्ता यहीं नहीं रुके, उन पर कदाचार के कई आरोप लगे। गाय आवंटन घोटाला ऐसा ही एक मामला है।
इस संबंध में आदिवासी विकास विभाग के उपायुक्त एवं चार्टर्ड अधिकारी रवींद्र ठाकरे द्वारा दी गई पांच सौ पेज की जांच रिपोर्ट शुरू से पढ़ने लायक है। गुप्ता के इशारे पर विभाग के अधिकारियों और दलालों ने फर्जी लाभार्थी बनाने, उनके खातों से म्यूचुअल फंड निकालने जैसे कई अलौकिक काम किये। इस रिपोर्ट में उन सभी के जवाब हैं और उन्होंने सारा दोष गुप्ता पर मढ़ दिया है। एक प्रादेशिक अखबार को इस घोटाले पर्दाफाश करना पड़ा और तब कही इसकी जांच शुरू हुई ।
गुप्ता ने सभी आरोपों को सिरे से इनकार किया है लेकिन उनके खिलाफ बहुत सारे सबूत पेश किए हैं। अब सवाल ये है कि जब ये सज्जन ये सब धंधा कर रहे थे और ये बात सार्वजनिक हो रही थी तो गढ़चिरौली के कलेक्टर संजय मीणा क्या कर रहे थे? संभागीय आयुक्त ने इस ओर से आंखें कैसे मूंद लीं? यहीं असली सवाल है की इतना कुछ घोटाला इन दोनो अधिकारियों के नाक के नीचे हो रहा था और ये दोनो अधिकारी क्या सच में बेखबर थे ?
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